महाराष्ट्र के जलना जिले में किसानों को प्राकृतिक आपदा में हुए फसल नुकसान के लिए दी जाने वाली राहत राशि में ₹42 करोड़ के घोटाले का खुलासा हुआ है। इस मामले में अब तक राजस्व विभाग के 21 अधिकारियों को निलंबित किया जा चुका है, जिनमें 17 तलाठी और 5 क्लर्क शामिल हैं। जिला प्रशासन ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच का दायरा जलना की अन्य तहसीलों और मराठवाड़ा के सात अन्य जिलों तक बढ़ा दिया है।
कैसे हुआ घोटाले का पर्दाफाश?
यह घोटाला अंबड और घनसावंगी तहसीलों के कुछ किसानों की शिकायतों के बाद सामने आया। शिकायत थी कि उन्हें फसल मुआवज़ा नहीं मिला, जबकि सरकारी रिकॉर्ड में भुगतान दिखाया गया। इसके बाद जलना के जिलाधिकारी श्रीकृष्ण पंचाल ने जनवरी 2025 में एक जिला स्तरीय जांच समिति गठित की।
समिति की अंतरिम ऑडिट रिपोर्ट में ₹79 करोड़ की राशि को संदिग्ध बताया गया, जिसमें से ₹42 करोड़ की हेराफेरी की पुष्टि अब तक हो चुकी है। जांच में सामने आया कि बोगस किसानों के नाम पर दावा, सरकारी भूमि पर झूठे फसल नुकसान के रिकॉर्ड, जाली दस्तावेज़, और भूमि रिकॉर्ड में हेरफेर जैसे तरीके अपनाए गए।
जानिए किसे कितनी राशि हड़पी:
रिपोर्ट के अनुसार, 10 अधिकारियों ने ₹1 करोड़ से ₹1.9 करोड़ तक की राशि अपने नाम पर हासिल की।
कई अन्य अधिकारियों ने ₹25 लाख से ₹50 लाख तक की हेराफेरी की।
अब तक करीब ₹7 करोड़ की राशि वापस वसूल की जा चुकी है।
और कौन-कौन है जांच के घेरे में?
अब ग्राम सेवक और कृषि सहायकों (Krishi Sahayaks) पर भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि मुआवज़े की सच्चाई की ज़मीन-स्तरीय पुष्टि इन्हीं अधिकारियों की ज़िम्मेदारी होती है। किसानों के संगठनों ने इनके खिलाफ भी कार्रवाई की माँग की है।
जिलाधिकारी श्री पंचाल ने बताया कि सभी संबंधित अधिकारियों — ग्राम सेवक, कृषि सहायक, तहसीलदार — पर विस्तृत जांच चल रही है, और अंतिम ऑडिट के बाद सख्त कार्रवाई की जाएगी।
अब पूरे मराठवाड़ा में होगी जांच
औरंगाबाद संभागीय आयुक्त ने 11 जून को एक नई अधिसूचना जारी कर सभी 8 जिलों के राजस्व अधिकारियों को पिछले 5 वर्षों में वितरित सभी फसल मुआवज़ों की जांच का आदेश दिया है। इसमें यह जांच की जाएगी कि:
क्या अयोग्य लोगों को मुआवज़ा मिला?
क्या सरकारी भूमि या बंजर ज़मीन पर भी फर्जी दावे किए गए?
क्या एक व्यक्ति को एक से अधिक बार अनियमित भुगतान मिला?
और क्या राशि गलत खातों में ट्रांसफर की गई?
अब गांव स्तर के रिकॉर्ड, सैटेलाइट इमेजरी और बैंक वेरिफिकेशन की मदद से असली लाभार्थियों की पहचान की जा रही है।
जो मामला सिर्फ दो तहसीलों में शिकायत से शुरू हुआ, वो अब बनता जा रहा है महाराष्ट्र का एक बड़ा कृषि राहत घोटाला। इसने न सिर्फ सिस्टम की खामियों को उजागर किया है, बल्कि यह भी बताया कि जवाबदेही और पारदर्शिता कितनी ज़रूरी है, खासकर जब बात किसानों के अधिकार की हो।
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