“शाह के शासनकाल से लेकर ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ तक – एक ऐतिहासिक संघर्ष की कहानी”
ईरान और इज़राइल के बीच बढ़ते तनाव ने एक नए मोड़ लिया है, जब इज़राइल ने ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ के तहत ईरान के परमाणु सुविधाओं, मिसाइल कारखानों और सैन्य कमांडरों पर हमला किया। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इसे इज़राइल के अस्तित्व के लिए एक निर्णायक क्षण बताया है।
हालांकि आज दोनों देश एक-दूसरे के कट्टर विरोधी हैं, लेकिन इतिहास में एक समय था जब ये दोनों गुप्त सहयोगी थे। शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी के शासनकाल में, ईरान और इज़राइल ने साझा रणनीतिक हितों के तहत गुप्त संबंध बनाए थे। मॉसाद और ईरान की SAVAK जैसी खुफिया एजेंसियों के माध्यम से दोनों देशों ने एक-दूसरे की मदद की थी।
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हालांकि, 1979 में ईरान की इस्लामी क्रांति के बाद, दोनों देशों के रिश्ते बिगड़ने लगे। आयतुल्ला खोमेनी के नेतृत्व में, ईरान ने इज़राइल के खिलाफ मुखर विरोध जताया। लेकिन इसके बावजूद, 1980 के दशक में इराक़ के खिलाफ युद्ध के दौरान, दोनों देशों ने एक-दूसरे से अप्रत्यक्ष रूप से सहायता प्राप्त की। इस दौरान, इज़राइल ने ईरान को हथियारों की आपूर्ति की और खुफिया जानकारी साझा की।
हाल ही में, 2025 में, इज़राइल ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को नष्ट करने के लिए एक बड़े सैन्य अभियान की शुरुआत की है। इस हमले में ईरान के क्रांतिकारी गार्ड्स के प्रमुख होसैन सलामी और दो प्रमुख परमाणु वैज्ञानिकों की मौत हो गई।
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इस संघर्ष ने न केवल मध्य पूर्व की स्थिरता को चुनौती दी है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी चिंता बढ़ा दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह संघर्ष क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरे का संकेत है।
समाप्ति:
ईरान और इज़राइल के बीच यह संघर्ष एक जटिल और ऐतिहासिक संबंधों की परिणति है। जहां एक समय दोनों देशों के बीच गुप्त सहयोग था, वहीं अब यह संघर्ष एक खुला शत्रुता बन चुका है। इसका प्रभाव न केवल मध्य पूर्व, बल्कि समग्र वैश्विक राजनीति पर भी पड़ेगा।