चीन ने कसा EV इंडस्ट्री पर शिकंजा, भारतीय ऑटो क्षेत्र की ग्रोथ पर भारी असर!
नई दिल्ली:
चीन ने दुर्लभ पृथ्वी धातुओं के निर्यात पर सख्त नियम लागू किए हैं, जो भारत में इलेक्ट्रिक वाहन (EV) इंडस्ट्री के लिए नई चुनौतियाँ लेकर आए हैं। इन धातुओं का इस्तेमाल बैटरी बनाने में होता है, और इन पर प्रतिबंध से भारत का ऑटोमोटिव सेक्टर और इलेक्ट्रिक वाहन (EV) क्षेत्र संकट में पड़ सकता है।
क्या हैं चीन के नए निर्यात नियम?
चीन, जो दुर्लभ पृथ्वी धातुओं का सबसे बड़ा उत्पादक है, अब इन धातुओं के निर्यात पर और कड़े नियंत्रण लगाएगा। इनमें विशेष रूप से लिथियम, कोबाल्ट और नियोडिमियम जैसे तत्व शामिल हैं, जो बैटरियों, इलेक्ट्रिक मोटर्स और अन्य हाई-टेक प्रोडक्ट्स के निर्माण में उपयोग होते हैं। यह कदम चीन ने पर्यावरणीय कारणों और अपनी घरेलू जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उठाया है।

भारत पर असर:
भारत के इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग को इस कदम से बड़ा झटका लग सकता है। चूंकि भारत की अधिकांश EV बैटरियाँ इन दुर्लभ धातुओं से बनी होती हैं, ऐसे में इनका आपूर्ति बाधित होने से EV निर्माताओं को उत्पादन में कठिनाई हो सकती है। इसके अलावा, भारत का ऑटो सेक्टर भी धीमा पड़ सकता है, जो पहले से ही महामारी और आपूर्ति श्रृंखला संकट से जूझ रहा है।
ऑटो सेक्टर पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
भारत सरकार और उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह स्थिति बनी रहती है, तो आने वाले महीनों में इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमतें बढ़ सकती हैं और विकास की गति धीमी पड़ सकती है। इसके अलावा, यदि चीन द्वारा कड़े निर्यात प्रतिबंध जारी रहते हैं, तो भारत को वैकल्पिक आपूर्ति स्रोतों की तलाश करनी पड़ेगी, जो कि एक महंगा और चुनौतीपूर्ण विकल्प हो सकता है।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर असर:
भारत के अलावा, कई अन्य देशों के ऑटो उद्योग को भी इस स्थिति से नुकसान हो सकता है। वैश्विक व्यापार पर इसके दूरगामी असर होंगे, और इन धातुओं के निर्यात पर चीन के नए नियंत्रण से दुनिया भर में इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण की लागत बढ़ सकती है।
क्या विकल्प हैं भारत के पास?
भारत को अपनी आपूर्ति श्रृंखला को diversifying करने के लिए जल्दी से जल्दी अन्य देशों से दुर्लभ पृथ्वी धातुओं की आपूर्ति करने के लिए प्रयास तेज करने होंगे। इसके लिए भारत सरकार को रणनीतिक साझेदारियों और स्वदेशी खनन क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में कदम उठाने होंगे।
निष्कर्ष:
चीन का यह कदम भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग के लिए एक बड़ा चुनौती बन सकता है। भारत के लिए अब यह समय है कि वह अपनी आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत और विविध बनाकर इस संकट से उबरने का रास्ता निकाले। इस बीच, ऑटोमोटिव सेक्टर की निगाहें चीन की आगामी नीतियों पर रहेंगी।